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Whether Amavasya Tarpanam can be performed before 6 AM ?

sapsrikaanth

Active member
Hello All,
1) few people are doing Tarpanam before 6 AM ( I am not blaming them ) but want to understand what is the time prescribed as per vedic rules ?
2) We know that 11 to 12 noon is a good time for Tarpanam, please correct me if I am wrong ?
3) As per rules, Tarpanam as to be performed in Madhayanika time ( that is afternoon time). As per our Hindu religion when the Madhayanika starts ? is it starting from 8:30 AM and lasting till 2:30 PM ?

Thank you & kindest regards
Srikaanth
 
sl no. 2 is correct, 11 - 12 noon.
madhyahnam. means middle of day.
before tharpanam , madhyahnikam sandhya vandanam to be done.
start by 11 , will be over by 12
 
Madhyaniham means exact half between sun raise and sun set time. We usually take it as 1200 noon

Reproducing lines from this forum
"According to ancient custom, it is said that timing is more important. The morning sandhyavandanam has to be performed before the sunrise. Maadhyanniham to be performed at noon and evening sandhyavandanam before sunset. In tamil, it is said - காணாமல், கோணாமல், கண்டு - கொடு. காணாமல் means without seeing the sun (before sunrise); கோணாமல் means when the sun is at 90 degrees; கண்டு means when the sun shines in the west (before sunset). The word கொடு refers to argyam."
 
Ref all threads. Things are changing in Kaliyuga. You cannot blame anybody for not doing the rituals as per sastras. It is just not possible except for retirees. Doing something is better than doing nothing. People could do it in olden days when they were not going for wok for earning or going for work during Saangava and Madhyanika kalam. They had time to do the prescribed rituals in time. Nowadays it is not possible. I feel that if you are able to do it as per sastras, the pitrus will be born very near to the place where you are giving argyam, since they take their food (lunch) at the correct time i.e., Aparanna kalam. If you give argyam at 0600AM, they eat lunch in the Pratha kalam itself. I have seen people living in south Chennai and going for work on North Chennai, taking lunch before going for work at Pratha kalam and take tiffin to eat at Madhyanika/Aparanna kalam. Otherwise your pithrus are born far away so that when you argyam at Pratha Kalam, they will be taking food at Madhyanna/Aparanna kalams, i.e., for Indians they will be somewhere in near/far east depending on time you give argyam.
Daytime (sunrise to sunset) is divided equally into FIVE periods i.e., Pratha kalam, Saangava kalam, Madhyanika kalam, Aparanna kalam and Sayam kalam. Lunch is supposed to be taken only in Aparanna kalam. During Pratha kalam you should take some fruit and milk or just nothing. During night light tiffin or nothing. This is prescribed to
maintain good health. Akala Bhojanam is bad for health and reduces your Ayus.
 
Hello All,
1) few people are doing Tarpanam before 6 AM ( I am not blaming them ) but want to understand what is the time prescribed as per vedic rules ?
2) We know that 11 to 12 noon is a good time for Tarpanam, please correct me if I am wrong ?
3) As per rules, Tarpanam as to be performed in Madhayanika time ( that is afternoon time). As per our Hindu religion when the Madhayanika starts ? is it starting from 8:30 AM and lasting till 2:30 PM ?

Thank you & kindest regards
Srikaanth
Sir, The day of 12 hours(30 Nazhigai) is divided into 5 parts each consisting of 2hrs 24 min(6 Nazhigai) as follows:-
Assuming the Sunrise at 06:00 and Sunset at 18:00
1) Pratah Kalam- 06:00 to 08:24
ப்ராதஃ காலம்
2) Sangava Kalam- 08:24 to 10:48
ஸங்கவ காலம்
3) Madhyanha Kalam- 10:48 to 13:12
மத்யான்ஹ காலம்
4) Aparanha Kalam- 13:12 to 15:36
அபரான்ஹ காலம்
5) Sayam Kalam- 15:36 to 18:00
ஸாயம் காலம்
 
i shall be grateful if I am provided Ammavasay Tharpanam Yajurveda in Sanskrit.
Namaskarams
My e mail [email protected]
Regards and Best Wishes
Ramesh
तर्पण सङ्कल्पम्
**********************************
(பொதுவாக தர்ப்பண நாளன்று ஜன்ம நக்ஷத்ரம் சேர்ந்து வந்தாலோ, ஞாயிறு, செவ்வாய், வெள்ளிக் கிழமைகளில் வந்தாலோ, கருப்பு எள்ளுடன் ஶுத்த
அக்ஷதையையும் சேர்த்து தர்ப்பணம் செய்ய வேண்டும்.)
------------------------------------------
आचम्य
(>3 தர்ப்பங்கள்
கால்களுக்குக் கீழே)
अप उपस्पृश्य पवित्रपाणिः
(3 தர்ப்பங்கள் கை இடுக்கில்)
शुक्लाम्बरधरम्....उपशान्तये ||
ॐ भूः ... भूर्भुवस्सुवरोम् ||
ममोपात्त समस्त दुरितक्षयद्वारा ...प्रीत्यर्थं
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सबाह्यः अभ्यन्तरः
शुचिः
मानसं वाचिकं पापं कर्मणा समुपार्जितम्
श्रीराम स्मरणेनैव व्यपोहति न संशयः
श्रीराम राम राम
तिथिर्विष्णुः तथावारः नक्षत्रं विष्णुरेवच
योगः च करणं चैव सर्वं विष्णुमयं जगत्
श्रीगोविन्द गोविन्द गोविन्द
अद्य श्रीभगवतः महापुरुषस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य आद्य ब्रह्मणः
द्वितीय परार्धे श्वेतवराह कल्पे वैवस्वत
मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमे
पादे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे मेरोः
दक्षिणेपार्श्वे शकाब्दे अस्मिन् वर्तमाने
व्यावहारिके प्रभवादीनां षष्ट्याः
संवत्सराणां मध्ये
------------------------------------------
பஞ்சாங்கத்தில் இருந்து பெறவும்
...नाम सम्वत्सरे
...अयने
...ऋतौ
...मासे
...पक्षे
...पुण्यतिथौ
...वासरयुक्तायां
...नक्षत्रयुक्तायां
...योग
...करण
एवं गुण विशेषण विशिष्टायां
अस्यां (...) पुण्यतिथौ
------------------------------------------
प्राचीनावीती
(பித்ரு வர்க்கம்)
...गोत्राणां ...शर्मणां
वसुरुद्रादित्य स्वरूपाणां
अस्मत् पितृ पितामह प्रपितामहानां
...गोत्राणां ...नाम्नीनां
वसुरुद्रादित्य स्वरूपाणां
(தாயார் இல்லை என்றால்)
अस्मत् मातृ पितामही प्रपितामहीनां
(தாயார் இருந்தால்)
अस्मत् पितामही पितुःपितामही
पितुःप्रपितामहीनां
(மாதாமஹ வர்க்கம்)
...गोत्राणां ...शर्मणां
वसुरुद्रादित्य स्वरूपाणां
अस्मत् मातामह मातुःपितामह मातुःप्रपितामहानां
...गोत्राणां ...नाम्नीनां
वसुरुद्रादित्य स्वरूपाणां
अस्मत् मातामही मातुःपितामही मातुःप्रपितामहीनां
उभयवंश पितॄणां अक्षयतृप्त्यर्थं
------------------------------------------
(अमावास्या) पुण्यकाले (दर्श) श्राद्धं
हिरण्य रूपेण अद्य करिष्ये, तदङ्गं तिल
तर्पणं च करिष्ये
(இடுக்கிய கட்டை
தர்ப்பையை தெற்குப்
பக்கம் போடவும்.)
उपवीती, अप उपस्पृश्य,
------------------------------------------
(தர்ப்பண ஸங்கல்பம் முடித்து கையில் தாம்பூலம் தக்ஷிணை வைத்துக் கொண்டு, சிறிது ஜலம் விட்டுக் கொண்டு, கீழ்க்கண்ட மந்த்ரம் சொல்லி தத்தம் செய்து தக்ஷிணையைப் பூமியில் வைத்து விடவும். அதன் பிறகு உங்கள் அகத்து வாத்யாரிடம் அதைக் கொடுத்து விடவும்.)
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेम बीजं विभावसोः
अनन्तपुण्य फलदं अतः शान्तिं प्रयच्छ मे
अनुष्ठीयमाने अस्मिन् हिरण्य श्राद्धे
वर्गद्वय पितॄणां अक्षय तृप्त्यर्थं इदं
हिरण्यं संप्रदते
------------------------------------------
प्राचीनावीती
தாம்பாளத்தில்
தர்ப்பைகளை கிழக்கு
மேற்காகப் பரப்பி
வைக்கவும். கூர்ச்சத்தை
நுனி தெற்கு முகம்
பார்க்குமாறு வைக்கவும்.
******************************
तर्पणम् (सामान्य)
**************
आयात वर्गद्वय पितरः सोम्या गम्भीरैः पथिभिः पूर्व्यैः |
प्रजामस्मभ्यं ददतो रयिं च दीर्घायुत्वं च शतशारदं च ||
ॐ भूर्भुवस्सुवरों अस्मिन् कूर्चे अस्मत् वर्गद्वय पितॄन् ध्यायामि, आवाहयामि |
(கூர்ச்சத்தின் மேல் எள்ளை மறித்துப் போட வேண்டும்.)
सकृदाच्छिन्नं बर्हिरूर्णामृदु | स्योनं पितृभ्यस्त्वा पराम्यहम् | अस्मिन् सीदन्तु मे पितरः सोम्याः | पितामहैः प्रपितामहैः च अनुगैः सह |
वसुरुद्रादित्य स्वरूपाणां अस्मत् वर्गद्वय पितॄणां इदमासनम् |
(என்று கட்டை தர்ப்பைகளைக் கூர்ச்சத்தின் மேல் வைக்கவும்.)
तिलादि सकलाराधनैः सुवर्चितम् |
(கூர்ச்சத்தின் மேல் எள்ளை மறித்துப் போட வேண்டும்.)
------------------------------------------
தந்தையார் வழி பித்ருக்களுக்கு முதலில் தர்ப்பணம் பண்ணி விட்டு அதன் பிறகு தாயார் வழி பித்ருக்களுக்குப் பண்ணலாம். மந்த்ரங்கள் ஒன்றே.
पितृ / मातामह तर्पणम्
******************
1) उदीरतामवर उत् परास उन्मध्यमाः पितरः
सोम्यासः |
असुं य ईयुः अवृका ऋतज्ञास्ते नो(अ)वन्तु
पितरो हवेषु ||
2) अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः
सोम्यासः |
तेषां वयग्गुस्सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे
स्याम ||
3) आयन्तु नः पितरः सोम्यासः अग्निष्वात्ताः
पथिभिः देव यानैः |
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मादयन्त्वधि ब्रुवन्तु ते
अवन्त्वस्मान् ||
...गोत्रान् ...शर्मणः वसु रूपान् मम (पितॄन्/मातामहान्) स्वधा नमस्तर्पयामि |
------------------------------------------
पितामह / मातुःपितामह तर्पणम्
*************************
1) ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं |
परिस्रुतं स्वधा स्थ तर्पयत मे पितॄन् ||
2) पितृभ्यः स्वधाविभ्यः स्वधा नमः |
पितामहेभ्यः स्वधाविभ्यः स्वधा नमः |
प्रपितामहेभ्यः स्वधाविभ्यः स्वधा नमः ||
3) ये चेह पितरो ये च नेह याग्गुश्च विद्म
यागुंउ च न प्रविद्म |
अग्ने तान् वेत्थ यदि ते जातवेदः तयागुं
प्रत्तग्गुस्स्वधया मदन्तु ||
...गोत्रान् ...शर्मणः रुद्र रूपान् मम (पितामहान्/ मातुःपितामहान्) स्वधा नमस्तर्पयामि |
------------------------------------------
प्रपितामह / मातुःप्रपितामह तर्पणम्
***************************
1) मधु वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः |
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ||
2) मधु नक्तमुतोषसि मधुमत् पार्थिवगुंरजः |
मधुद्यौरस्तु नः पिता ||
3) मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमागुं अस्तु सूर्यः |
माध्वीर्गावो भवन्तु नः ||
...गोत्रान् ...शर्मणः आदित्य रूपान् मम (प्रपितामहान्/ मातुःप्रपितामहान्) स्वधा नमस्तर्पयामि |
------------------------------------------
मातृ, पितामही, प्रपितामही / मातामही.. तर्पणम्
*************************************
..गोत्राः ..नाम्नीः वसु/रुद्र/आदित्य रूपाः मम मातृ/पितामही/प्रपितामही स्वधा नमस्तर्पयामि | (3)
...गोत्राः ...नाम्नीः वसु/रुद्र/आदित्य रूपाः मम मातामही/मातुः पितामही/मातुः प्रपितामही स्वधा नमस्तर्पयामि | (3)
------------------------------------------
(கீழ்க்கண்டவற்றைப் பித்ரு, மாத்ரு வர்கங்களுக்குத் தர்ப்பணம் செய்துவிட்ட பிறகு கடைசியாகச் செய்யவும்.)
ज्ञाताज्ञात अस्मत् वर्गद्वय पितॄन् स्वधा नमस्तर्पयामि (3)
ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिस्रुतं स्वधा स्थ तर्पयत मे पितॄन् | तृप्यत तृप्यत तृप्यत ||
उपवीती
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च |
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमोनमः ||(3)
3 தடவை ப்ரதக்ஷிணம், அபிவாதயே...
प्राचीनावीती
वसु रुद्र आदित्य स्वरूपेभ्यः अस्मत् वर्गद्वय पितृभ्यो नमः |
(சிறிது எள்ளை எடுத்துக் கூர்ச்சத்தின் மேல் மறித்துப் போடவும்.)
उपवीती
देवताभ्यः ...नमोनमः ||
प्राचीनावीती
आयात वर्गद्वय पितरः सोम्या गम्भीरैः पथिभिः पूर्व्यैः |
प्रजामस्मभ्यं ददतो रयिं च दीर्घायुत्वं च शतशारदं च ||
ॐ भूर्भुवस्सुवरोम् अस्मात् कूर्चात् वर्गद्वय पितॄन् यथास्थानं प्रतिष्ठापयामि | शोभनार्थे क्षेमाय पुनरागमनाय च ||
(சிறிது எள்ளை எடுத்துக் கூர்ச்சத்தின் மேல் போடவும்.
கூர்ச்சத்தின் முடிச்சை அவிழ்த்து, நுனியைக் கீழ்நோக்கி வைத்து எள்ளும் ஜலமும் சேர்த்து)
येषां न माता न पिता न मित्र ज्ञाति बन्धवाः |
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मयोत्सृष्टैः कुशोदकैः ||
(என்று கூர்ச்சத்தைக் கீழே தாம்பாளத்தில் போடவும்.)
उपवीती, आचम्य
कायेन ...इति समर्पयामि ||
मया कृतं इदं अस्मत् वर्गद्वय पितॄन् उद्दिश्य दर्श/ सङ्क्रमण/ उपराग श्राद्धाख्यं कर्म ब्रह्मार्पणमस्तु ||
ॐ तत् सत्
पवित्रं विसृज्य आचम्य
------------------------------------------
பெரியோர்களிடம் காண்பித்து ஒப்புதல் பெற்று, பிறகு செய்யவும்.
 

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